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Chapter 12 - बरषहिं जलद Balbharati solutions for Hindi - Lokbharati 10th Standard SSC Maharashtra State Board [हिंदी - लोकभारती १० वीं कक्षा]


Chapter 12 - बरषहिं जलद Balbharati solutions for Hindi - Lokbharati 10th Standard SSC Maharashtra State Board [हिंदी - लोकभारती १० वीं कक्षा]

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Chapter 2: बरषहिं जलद

कृति पूर्ण कीजिए :

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SOLUTION

नदी

समुद्र


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निम्‍न अर्थ को स्‍पष्‍ट करने वाली पंक्‍तियाँ लिखिए :

संतों की सहनशीलता



SOLUTION

खल के बचन संत सह जैसे।


कपूत के कारण कुल की हान


SOLUTION

जिमि कपूत के उपजे, कुल सदधर्म नसाहिं।


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तालिका पूर्ण कीजिए :

इन्हें

यह कहा है

(१) ______

बटु समुदाय

(२) सज्‍जनों के सद्गुण

______



SOLUTION

इन्हें

यह कहा है

(१) दादूर

बटु समुदाय

(२) सज्‍जनों के सद्गुण

तालाब में जल भरना


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जोड़ियाँ मिलाइए :

 

‘अ’ समूह

उत्‍तर

 

‘ब’ समूह

१.

दमकती बिजली

 

दुष्‍ट की मित्रता

२.

नव पल्‍लव से भरा वृक

 

साधक के मन का विवेक

३.

उपकारी की संपत

 

ससि संपन्न पृथ्

४.

भूमि की

 

माया से लिपटा जीव



SOLUTION

अ' समूह

उत्तर:

१. दमकती बिजली

दृष्ट की मित्रता

२.नव पल्लव से भरा वृक्ष

साधक के मन का विवेक

३. उपकारी की संपत्ति

उपकारी की संपत्ति - ससि संपन्न पृथ्वी

४. भूमि की

माया से लिपटा जीव



इनके लिए पद्‌यांश में प्रयुक्‍त शब्‍द :

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SOLUTION

बादल - जलद

ग्रह - पतंग (सूर्य)

उपग्रह - महि

पेड़ - बिटप

पौधा - अर्क-जवान

पत्ते - पात

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प्रस्‍तुत पद्‌यांश से अपनी पसंद की किन्हीं चार पंक्‍तियों का सरल अर्थलिखिए।

कबहुँप्रबल बह मारुत, जहँ-तहँ मेघ बिलाहिं ।

जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं ।।

कबहुँदिवस महँ निबिड़ तम, कबहुँक प्रगट पतंग ।

बिनसइ-उपजइ ग्‍यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग ।।



SOLUTION

कभी-कभी वायु बहुत तेज गति से चलने लगती है। इससे बादल यहाँ-वहाँ गायब हो जाते हैं। यह दृश्य उसी प्रकार लगता है जैसे परिवार में पुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म (श्रेष्ठ आचरण) नष्ट हो जाते हैं। कभी (बादलों के कारण) दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाता है। तब लगता है, जैसे बुरी संगति पाकर ज्ञान नष्ट हो गया हो और अच्छी संगति पाकर ज्ञान उत्पन्न हो गया हो।


Chapter 12 - बरषहिं जलद Balbharati solutions for Hindi - Lokbharati 10th Standard

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‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ इस सुवचन पर आधारित कहानी लेखन कीजिए।


SOLUTION

परोपकार सबसे बड़ा धर्म

      रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा है− 'परहित सरिस धर्म नहीं भाई', जिसका भावार्थ यह है कि दूसरों का हित करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है। ज्योतिमठ के शंकराचार्य के परम शिष्य का नाम कृष्ण बोधाश्रम था। कृष्ण बोधाश्रम एक बार प्रवास पर निकले। घूमते-घूमते वे एक ऐसी जगह पहुँच गए, जहाँ पिछले पाँच वर्षों से बारिश नहीं हुई थी। उस क्षेत्र के सारे तालाब और कुएँ सूख गए थे। उन्हें पानी के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता था।

     अपने क्षेत्र में एक संन्यासी को आया देख गाँव के सारे लोग कृष्ण बोधाश्रम के पास पहुँचे। गाँववालों ने कृष्ण बोधाश्रम को अपनी परेशानी बताई और विनती करके बोले,’महाराज जी इस दुविधा से निपटने के लिए कोई उपाय बताएँ।“ कृष्ण बोधाश्रम ने मुसकुराकर कहा, ’पुण्य करोगे तो भगवान जरूर प्रसन्न होंगे।“ गाँववालों ने कहा,’स्वामी जी हम लोग क्या पुण्य करें? इस भीषण समस्या के कारण हमें तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। कृपा करके आप ही कोई मार्ग दिखाएँ।“ कृष्ण बोधाश्रम जी ने कहा, ’सामने जो तालाब दिख रहा है, उसमें पानी नहीं है, जिसके कारण उस तालाब की मछलियाँ प्यास से मर रही हैं। तुम लोग उस तालाब में पानी डालो और प्यास से मर रही मछलियों को बचा लो।“

      गाँववालों ने कहा, "स्वामी जी हम लोगों के पास पीने के लिए भी पानी नहीं है। ऐसे में इन मछलियों के लिए हम पानी कहाँ से लाएँ?“ स्वामी जी ने कहा,’कहीं दूर से भी पानी लाना पड़े, तो लेकर आओ और उस तालाब में डालो।“ सभी लोगों ने दूर-दराज के क्षेत्रों से पानी लाकर उस तालाब में डालना शुरू किया।

      दो-चार दिनों तक ऐसा चलता रहा। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई की उसी सप्ताह में घनघोर बारिश शुरू हो गई। लगातार बारिश होने से उस क्षेत्र में सूखे की स्थिति समाप्त हो गई और वहाँ के तालाबों में भरपूर पानी एकत्रित हो गया। अब तक संन्यासी गाँव से जा चुके थे, लेकिन गाँववालों को समझ में यह बात आ चुकी थी कि दूसरों की मदद करने वालों की मदद ईश्वर स्वयं करते हैं। इस घटना के बाद उस क्षेत्र के लोगों ने परहित का मार्ग अपना लिया और इससे सारा क्षेत्र खुशहाल बन गया।

सीख: दूसरों की सहायता करना ही सबसे बड़ा धर्म है।


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Balbharati Solutions for Hindi - Lokbharati 10th Standard SSC Maharashtra State Board [हिंदी - लोकभारती १० वीं कक्षा]

 • Chapter 1.01: भारत महिमा

 • Chapter 1.02: लक्ष्मी

 • Chapter 1.03: वाह रे ! हमदर्द

 • Chapter 1.04: मन (पूरक पठन)

 • Chapter 1.05: गोवा : जैसा मैंने देखा

 • Chapter 1.06: गिरिधर नागर

 • Chapter 1.07: खुला आकाश (पूरक पठन)

 • Chapter 1.08: गजल

 • Chapter 1.09: रीढ़ की हड्डी

 • Chapter 1.1: ठेस (पूरक पठन)

 • Chapter 1.11: कृषक का गान

 • Chapter 2.01: बरषहिं जलद

 • Chapter 2.02: दो लघुकथाएँ (पूरक पठन)

 • Chapter 2.03: श्रम साधना

 • Chapter 2.04: छापा

 • Chapter 2.05: ईमानदारी की प्रतिमूर्ति

 • Chapter 2.06: हम इस धरती की संतति हैं (पूरक पठन)

 • Chapter 2.07: महिला आश्रम

 • Chapter 2.08: अपनी गंध नहीं बेचूँगा

 • Chapter 2.09: जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ

 • Chapter 2.1: बूढ़ी काकी (पूरक पठन)

 • Chapter 2.11: समता की ओर



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